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चुनाव पर कविता - परन्तु - कुमार अम्बुज। Hindi Poem On Election

बुद्धिजीवी भी सड़क पर आ सकते हैं 
परंतु क्या करें यह सरकार ठीक नहीं है 
माना कि यह लोकतंत्र है 
और हम सुधारना चाहते हैं यह समाज 
परंतु इधर ठाकुरों के वोट बहुत हैं 
बेचारा ज़िला दंडाधिकारी भी 
करना तो चाहता है कुछ हस्तक्षेप 
परंतु उसके अधिकारों में भी 
निर्बल को ही दंडित कर सकना सीमित है 
कहते हैं कि इस देश में कई लोग हैं दयालु 
परंतु उनकी संपन्नता से 
उजागर हो जाती है उनकी क्रूरता 
यों तो मैं ख़ुश हूँ 
परंतु मुझे शर्म आती है 
अपनी समकालीन कायरता पर 
मैं शब्दों से काम चलाता हूँ 
परंतु मुझे अब कुछ दूसरे हथियार भी लगेंगे 
परंतु संकल्प की कृशकाया 
नामालूम खाई की तरफ़ लिए ही चली जाती है 
विचार मेरे पास श्रेष्ठ है 
परंतु पराजित होता हुआ 
रोज़-रोज़ वह अल्पसंख्यक होता जाता है 
सोचता हूँ उसे रखना होगा जीवित 
परंतु हम सबको मिल कर ही 
जो धीरे-धीरे अब बहुत अकेले हैं। 
***

- कुमार अम्बुज की कविता

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