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रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'प्रभाती'। Ramdhari Singh Dinkar Poem Hindi 'Prabhati'

रे प्रवासी, जाग, तेरे 
देश का संवाद आया। 

(1) 
भेदमय संदेश सुन पुलकित 
खगों ने चंचु खोली; 
प्रेम से झुक-झुक प्रणति में 
पादपों की पंक्ति डोली; 
दूर प्राची की तटी से 
विश्व के तृण-तृण जगाता; 
फिर उदय की वायु का वन में 
सुपरिचित नाद आया।

रे प्रवासी, जाग, तेरे 
देश का संवाद आया। 

(2) 
व्योम-सर में हो उठा विकसित 
अरुण आलोक-शतदल; 
चिर-दुखी धरणी विभा में 
हो रही आनंद-विह्वल। 
चूमकर प्रति रोम से सिर 
पर चढ़ा वरदान प्रभु का, 
रश्मि-अंजलि में पिता का 
स्नेह-आशीर्वाद आया।

रे प्रवासी, जाग, तेरे 
देश का संवाद आया। 

(3) 
सिंधु-तट का आर्य भावुक 
आज जग मेरे हृदय में, 
खोजता, उद्गम विभा का 
दीप्त-मुख विस्मित उदय में; 
उग रहा जिस क्षितिज-रेखा 
से अरुण, उसके परे क्या? 
एक भूला देश धूमिल, 
सा मुझे क्यों याद आया?

रे प्रवासी, जाग, तेरे 
देश का संवाद आया।

✍🏻 रामधारी सिंह दिनकर की कविता

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