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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - राह कौन सी जाऊँ मैं | Atal Bihari Vajpayee Poem Hindi

कविता - राह कौन-सी जाऊँ मैं?
✍🏻 अटल बिहारी वाजपेयी

चौराहे पर लुटता चीर, 
प्यादे से पिट गया वज़ीर, 
चलूँ आख़िरी चाल कि बाज़ी छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं? 
राह कौन-सी जाऊँ मैं? 

सपना जन्मा और मर गया, 
मधु ऋतु में ही बाग़ झर गया, 
तिनके टूटे हुए बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं? 
राह कौन-सी जाऊँ मैं? 

दो दिन मिले उधार में 
घाटों के व्यापार में 
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं? 
राह कौन-सी जाऊँ मैं?

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